बुधवार, 6 जुलाई 2011

किसी परिचय की मोहताज़ तो नहीं है संगीता पुरी जी


ज़िन्दगीएक खामोश सफ़र  है जी यदि यह खामोश सफ़र है तो तय है माय डियर ललित जी  आप उस खामोश सफ़र में कभी शामिल नहीं. अब बताओ भला सारी ब्लागर बिरादरी चैन से मौज ले रही थी कि आप साहब ने "फ़ुंफ़कारती-पोस्ट" लिख मारी. उधर पाठकीय पसंद का ख्याल रखते हुए  बोल्डनेस’ शादी से पहले क्यों नहीं दिखाई थी? ... जे लौ  दुनाली तान दी    दीमक ''छौ''रसिया के सामने मन मौन सिंह -  ने इब हम का बोलें बाबा हमराही जी सच्ची में  का कहें ऐसी बारिस भई कय इश्‍क के जितने से कीड़े, बिल-बिलाकर आ गये। सड़क पै औऊ सड़कों पे मंडराने लगे चालीस के पार बाले.चलो छोड़ो आओ अपना अपना भाग बांच लैंवें इधर हो आवे.
   आज एक जोरदार बात भई... हमाए साहब के चैम्बर में एक कोटेशन लगो तो 

  

11 टिप्पणियाँ:

बढ़िया लगा ये अंदाज भी|

यह अंदाज भी निराला है वार्ता का ...!

मस्त वार्ता है दादा
आनंदानुभूति हूई अच्छे लिंक पाकर

साधुवाद

सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई ||

बहुत ही रोचक अन्दाज़ रहा वार्ता का।

अच्छे लिंक्स....सुन्दर प्रस्तुति....
संगीता पुरी जी को हार्दिक शुभकामनायें !

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