गुरुवार, 12 जनवरी 2012

रामचंद्र देशमुख 'बहुमत सम्‍मान' सुमिन को ..सपूतलालबहादुर शास्त्री जी की पुण्यतिथि . ब्‍लॉग4वार्ता .. संगीता पुरी

आप सबों को संगीता पुरी का नमस्‍कार , महीनेभर से काफी व्‍यस्‍त थी , 16 जनवरी के बाद भी बाहर रहना हो सकता है , इस दौरान ब्‍लॉग जगत पर गुपचुप निगाह तो बनी रही , पर न टिप्‍पणी कर सकी और न अधिक पोस्‍ट लिख पायी , काफी दिनों बाद आज वार्ता करने की फुर्सत मिली है , फटाफट आपको कुछ चुने हुए लिंक्‍सों पर लिए चलती हूं ...


जब उसकी तबियत खराब हो जाती थी तो वो बिलकुल चुप हो जाता था.किसी से भी कुछ बात नहीं करता.घर के बच्चों की वही शरारती बातें जिसे वो बहुत पसंद करता था, उन बातों से उसे चिढ होने लगती.तबियत बहुत ज्यादा खराब होने पर भी वो किसी से कुछ नहीं कहता.बुखार में जब उसका पूरा शरीर जल रहा होता तो भी वो अंतिम समय तक किसी से कुछ भी नहीं कहता.वो किसी से तब तक कुछ नहीं कहता जब तक बुखार या फिर कोई भी तकलीफ असहनीय नहीं हो जाती.दर्द सहना उसके लिए कोई नयी बात नहीं थी.पहले भी वो दर्द सहता आया था जब उसकी बहुत सी गलतियों ने उसके जीवन पर एक गहरा प्रभाव डाला था और अब भी..जाने अनजाने में अपनों से ही मिला दर्द हो या फिर उस लड़की से बिछड़ने का दर्द जिसे वो दुनिया में अपने माता-पिता के बाद सबसे ज्यादा चाहता था.
आज बरहा हिंदी टूल से हाथी टाइप किया हठी हो गया..... फिर मन ही मन सोचा की गलत क्या है..... लखनऊ का हाथी तो हठी है ही.... बड़े मुद्दे चलेंगे चुनाव में.... और फिर से लोगों के भले की सोचेंगे ये नेता लोग.... अच्छा है न.... जी बिलकुल... कल मेरे एक मित्र (जो की बैंगलोर के रहने वाले हैं) ने पुछा की उत्तर प्रदेश का चुनाव इतना खास क्यों है, हमने कहा जी वह इसलिए की यदि उत्तर प्रदेश एक अलग देश होता तो दुनिया की चौथी सबसे बड़ी आबादी का देश होता.... और उसके ऊपर चीन, भारत और अमेरिका ही होते.... उत्तर प्रदेश में चुनाव कराना किसी देश में चुनाव करने की तरह है.... हिंदुस्तान ने केवल इसी फ्रंट पे तो तरक्की की है जो ई वी एम् ले आये... नहीं तो आज भी गोरे फिरंग लोग पर्चे ही छाप रहे हैं...
कहते हैं लोग -
'सुबह का भूला शाम को घर आ जाए
तो भूला नहीं कहलाता ...'
लोग !
बहुत बड़े मन वाले होते हैं
कितनी अच्छी सोच रखते हैं हमेशा
- दूसरों के लिए ...!
पर - सोचनेवाली बात ये है कि
सुबह का भूला किस शाम को आएगा
उसी दिन या वर्षों बाद 
मुख्य चुनाव आयुक्त श्री वाय.एस. कुरैशी का हाल ही में उत्तर प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव के सम्बंध में हाथियों और मायावती की मुर्तियों को ढांकने का जो आदेश है उसकी विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न रूप सें विवेचना की जा रही है। उक्त आदेश के गुण:दोष पर जाये बिना, विभिन्न पार्टिया राजनैतिक दृष्टिकोण से अपने-अपने लाभ-हानि के हिसाब से उक्त आदेश की विवेचना कर उसे सही या गलत ठहरा रही है जिसके कारण मुख्य चुनाव आयुक्त के उक्त ओदश से उत्पन्न यक्ष प्रश्र गौण हो गया है
जापानियों का मछली प्रेम जग जाहिर है। परन्तु वे व्यंजन से ज्यादा उसके ताजेपन को अहमियत देते हैं।परन्तु आज कल प्रदुषण के कारण समुद्री तट के आसपास मछलियों का मिलना लगभग खत्म हो गया है।इसलिए मछुवारों को गहरे समुद्र की ओर जाना पड़ता था। इससे मछलियां तो काफी तादाद में मिल जाती थीं,पर आने-जाने में लगने वाले समय से उनका ताजापन खत्म हो जाता था। मेहनत ज्यादा बिक्री कम, मछुवारेपरेशान। फिर इसका एक हल निकाला गया। नौकाओं में फ्रिजरों का इंतजाम किया गया, मछली पकड़ी, फ्रिजरमें रख दी, बासी होने का डर खत्म। मछुवारे खुश क्योंकि इससे उन्हें और ज्यादा शिकार करने का समय मिलनेलग गया। परन्तु वह समस्या ही क्या जो ना आए।
दोपहर के ठीक पहले का पहर...किसी से इस तरह इश्क करना...समय जैसी किसी चीज़ के अस्तिव पर सवाल उठाते हुए...प्यार करना जैसे कि इस लम्हे से आगे कुछ नहीं है...कि इस लम्हे के बाद कुछ नहीं आएगा. वो इजाज़त मांगे तो उससे हाँ कहना कि वो तुम्हें बुरादे में तब्दील कर दे...कि उसकी बांहों के कसाव में सांसें दम भी तोड़ दें तो उसे रोकना मत कि इश्क हमेशा बस एक लम्हे का होता है...उस लम्हे में जी लेना या मर जाना. उसके आगे का मत सोचना कभी.
प्रिय मित्रो
सादर ब्लॉगस्ते!
आप यह भली-भाँति जानते होंगे कि हिन्दू धर्म में कितने वेद हैं. क्या नहीं जानते? चलिए हम बता देते हैं. वेदों की संख्या कुल चार है. ऋगवेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वेद. ऋगवेद, यजुर्वेद व सामवेद को वेदत्रयी के नाम से संबोधित किया जाता था. इतिहास को हिन्दू धर्म में पंचम वेद की संज्ञा दी गई है. प्राचीन काल में जो ब्राम्हण जितने वेदों का ज्ञान प्राप्त करता था उसके नाम के पीछे उसी आधार पर चतुर्वेदी, त्रिवेदी व द्विवेदी आदि उपनाम लगाए जाते थे. आज हम जिन ब्लॉगर महोदय से मुलाक़ात करने जा रहे हैं वह भी त्रिवेदी उपनाम को धारण किये हुए हैं. अब यह तो ज्ञात नहीं कि उन्हें तीन वेदों का ज्ञान है अथवा नहीं, किन्तु ब्लॉग शास्त्र को वह भली-भाँति पढ़ रहे हैं. पहली बार इस तरह औपचारिक रूप से इनका साक्षात्कार हो रहा है, इसकी वज़ह सिर्फ और सिर्फ ब्लॉगिंग है.
हलकी पतली सफ़ेद बर्फ की चादर पर चलना
जीवन को ज़रा और पास से छूकर निकलना
मेरी पहले से ही नम आखों को और नमी दे गया
निरुद्देश्य टहलना उलझे भावों को धवल ज़मीं दे गया

सोच का एक सिरा पकड़ कर दूसरे बिंदु तक गयी मैं
ठोकर मिलती रही है... इनके लिए नहीं नयी मैं
रोड़े पत्थर इंसानों की शक्ल में भी राहों में मिलते हैं
और कुछ ऐसे भी जिनसे मिल मन प्राण खिलते हैं
ग्रामीण परिवेश में एक अलग ही अल्हड़पन होता है। और यदि गाँव हमारे ‘रेवाखंड’ जैसा हो तो "वृन्दावन बिहारी लाल की जय" ! मेरा बचपन अपने ललित-ललाम गाँव के आनंद-उल्लास में ही बीता। विनोद-प्रियता बालावस्था से ही स्वभाव से अभिन्न रहा उस पर मनोनुकूल बाल-वृन्द का संग। कहावत में भी है कि "जहाँ लड़कों का संग तहाँ बाजे मृदंग ! जहाँ बुड्ढों का संग तहाँ खर्चे का तंग !!”
धीरे-धीरे गाँव के चौपाल की अघोषित स्थायी सदस्यता भी मिल गई। इधर साहित्य (ख़ास कर खट्टर-साहित्य) के अध्ययन से मेरी विनोद-प्रियता मुखर मैं वाक्-पटु होता गया। बाद में ये गुण गाँव के युवक-मंडली की अगुआई में बड़ा काम आया।
आज देश में हर तरफ भ्रष्टाचार का माहौल है. जहां देखो नेता भ्रष्टाचार में लिप्त हैं. देश को काफी लंबे समय से कोई ऐसा प्रतिनिधि (प्रधानमंत्री) नहीं मिला जिसका दामन पाक साफ हो. ऐसे हालात में देश के उन महानायकों की कल्पना दिल में शांति दिलाती है जिन्होंने अपने कर्मों से ऐसा आदर्श स्थापित किया है जिस पर चलना लगता है आज के नेताओं के लिए नामुमकिन है. और शायद यही वजह है कि आज के नेता उन महान लोगों को जल्दी याद नहीं करते जिनके आदर्शों पर चलना उनकी बस की बात नहीं. आज के नेता नेहरू और गांधी जी का नाम लेकर अपनी राजनीति तो चमका लेते हैं लेकिन उन नामों को कोई याद नहीं करता जिनकी भूमिका और जिनका कद किसी भी मायने में गांधी जी और नेहरू जी से कम नहीं था. आज देश के ऐसे ही सपूतलालबहादुर शास्त्री जी की पुण्यतिथि है जिन्होंने अपनी सादगी और सच्चाई से देश के सामने एक नया आदर्श पैदा किया.
हे मर्यादा के शुचि प्रतीक! ओ मानवता के पुण्य धाम!
हे अद्वितीय इतिहास पुरुष! शास्त्री! तुमको शत-शत प्रणाम!!

तुमने स्वदेश का कल देखा, अपने जीवन का आज नहीं;
तुमने मानव-मन की पुकार को किया नजर अंदाज नहीं.

तुमने तारों की प्रभा लखी,सूना आकाश नहीं देखा;
तुमने पतझड़ की झाड़ सही,कोरा मधुमास नहीं देखा.

तुमने प्रतिभा की पूजा की, प्रतिमा को किया न नमस्कार;
तुम सिद्धान्तों के लिए लड़े, धर्मों का किया न तिरस्कार.

तुमने जलते अंगारों पर, नंगे  पैरों  चलना  सीखा;
तुमने अभाव के आँगन में भी, भली-भाँति पलना सीखा.


एक साहब अकसर कहा करते हैं कि उनका फोटो कभी अच्छा नहीं आता। उनके कुछ फोटो हमने देखे। अच्छे-खासे थे; बल्कि दो-चार बहुत अच्छे थे-उनकी शक्ल से काफी ज्यादा अच्छे। पर नहीं उन्हें उनसे भी ज्यादा खूबसूरत फोटो चाहिए, क्योंकि वे अपने को बेहद खूबसूरत समझते हैं। असलियत यह है कि उन्हें अपनी खूबसूरती के बारे में सही जानकारी नहीं है।

6 टिप्पणियाँ:

संगीताजी स्वागत है आपका वार्ता पर... बहुत सुन्दर लिंक्स संयोजन किया है आपने... बोलते विचार बेहद खूबसूरत लगे...आभार

बहुत अच्छा लिंक संयोजन और लिंक्स |
आशा

काफ़ी दिनों के बाद आपकी वार्ता पढने मिली। रमेश शर्मा जी की आवाज में आडियो बढिया लगा।

आभार

आज की वार्ता ,में नए लिंक और नए रंग देखने को मिले .....बधाई हो आपको ..!

बढ़िया रही आज की वार्ता भी.

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी में किसी भी तरह का लिंक न लगाएं।
लिंक लगाने पर आपकी टिप्पणी हटा दी जाएगी।

Twitter Delicious Facebook Digg Stumbleupon Favorites More