रविवार, 21 अक्तूबर 2012

ब्लॉग जगत की नव देवियाँ- षष्ठी...ब्लॉग 4 वार्ता... ललित शर्मा

ललित शर्मा का नमस्कार .........., नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इस देवी को नवरात्रि में छठे दिन पूजा जाता है। कात्य गोत्र में विश्व प्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना की। कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो। मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी कात्यायिनी कहलाईं। इनका गुण शोध कार्य है। इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायिनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे जो जाते हैं। 

चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायिनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdY2Tkb8aM-yrpmY_uFIvwuekNgFcDNVvhLPHNoH5vkjllKvXsndseFzHJS4Z0MpS_TeQEM7Q2WT8fIdfV_t_X8Vuz7AdXnAA6bSV-N8DB40alwOzjmc9o_0FQSJyu-sroSMgzBwOJQq4/s320/6_maa_katyayini.jpg 
ब्लॉग जगत की आज की देवी हैं संध्या शर्मा जी। जो नागपुर से  ब्लॉगिंग कर रही हैं August 2010से ब्लॉग जगत में हैं..मूलत कवियत्री हैं, वार्ता पर ब्लॉग चर्चा भी करती हैं, अपने बारे में लिखते हुए कहती हैं- लिखने का शौक तो बचपन से था, ब्लॉग ने मेरी भावनाओं को आप तक पहुचाने की राह आसान कर दी. काफी भावुक और संवेदनशील हूँ. कभी अपने भीतर तो कभी अपने आस-पास जो घटित होते देखती हूँ, तो मन कुछ कहता है, बस उसे ही एक रचना का रूप दे देती हूँ. आपके आशीर्वाद और सराहना की आस रखती हूँ...

मंगलवार, 17 अगस्त 2010  को इनकी प्रथम पोस्ट 

WAQT NAHI

है ख्वाब भरे इन आँखों में,
पर सोने का वक़्त नहीं,
ज़ख्म भरे हैं सीने में,
पर सीने का वक़्त नहीं,
हर पल दौड़ती दुनिया है,
पर जीने का वक़्त नहीं,
हजारों ग़म इस दिल में भरे,
पर रोने का वक़्त नहीं,
सारे नाम ज़ेहेम में हैं,
पर दोस्ती का वक़्त नहीं,
अब तू ही बता ऐ ज़िन्दगी,
कैसी है यह दीवानगी,
तेरा साथ निभाना है,
संग चलने का वक़्त नहीं..

बृहस्पतिवार, 11 अक्तूबर 2012 को अद्यतन पोस्ट

जीवन संध्या


सुबह से शाम
चलते-चलते
थक गया तन
सुनते-सुनते
ऊबा मन
आँखें नम
निर्जन आस
भग्न अंतर
उद्वेलित श्वास
बहुत उदास
कुछ निराश
शब्द-शब्द
रूठ रहे हैं
मन प्राण
छूट रहे हैं
पराया था
अपना है
कभी लगता
सपना है
सूरज जैसे
अस्त हो चला
अंतिम छंद
गढ़ चला.................! 

अब लेते हैं विराम, मिलते हैं अगली वार्ता में राम राम  

12 टिप्पणियाँ:

शुभकामनाएं संध्या जी को.....
बहुत अच्छी रचनाकार और प्यारी इंसान है...

शुक्रिया ललित जी.

सादर
अनु

संध्या दी की रचनाये तो बहुत ही अच्छी
और प्रभावशाली होती है...
शुभकामनाएँ संध्या दी......
:-)

संध्या जी से मिलना रुचिकर लगा।

इस श्रंखला में स्वयं को देख कर बहुत अच्छा लगा .आभारी हूँ...

बहुत सुंदर .... संध्या जी को पढ्न अच्छा लगता है ।

बहुत सुन्दर परिचय मिला संध्या जी का ! उनसे मिल कर हार्दिक प्रसन्नता हुई ! आभार आपका !

बहुत बधाई संध्या जी |आपकी तो सभी कवितायेँ पढती हूँ |आज कल मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं है इस कारण टिप्पणी नहीं डाल पा रही हूँ |
आशा

सुन्दर ..अच्छा लगता है संध्या जी पढ़ना.

'विद्या समस्तास् तब देवि भेदः स्त्रियः समस्ता सकल जगत्सु,,त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्...'
इस शृंखला मैं नवदेवियों के रूप में इन नव-रूपों और उनकी कला के प्रस्तुतीकरण से ऐसा लगा कि उपरोक्त कथ्य सम्मुख उपस्थित हो गया हो !
इनका का ब्लाग-मंच पर स्वागत और प्रस्तुतकर्ता को बधाई !

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