बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

धीरे - धीरे सुबह हुई जाग उठी ज़िन्दगी... ब्लॉग 4 वार्ता... संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार... नए रेल व पेट्रोलियम मंत्रियों ने जल्द ही जनता पर बोझ बढ़ाए जाने के संकेत दिए हैं. वर्षों बाद रेलमंत्रालय को अपने हाथ में लेने के बाद कांग्रेस के पवन बंसल ने साफ कहा कि रेल किराया बढ़ाया जाएगा. वहीं मोइली ने सब्सिडी नीति पर विचार करने को कहा. उन्होंने यह भी कहा है कि मुझे रेल्वे  की वित्तीय हालत सुधारनी है. किराया बढ़ाते समय सेवा सुधारनी होगी तभी जनता पसंद करेगी. ये तो वक़्त ही तय करेगा कि जनता बढ़ा हुआ किराया पसंद करती है या इनकी सेवा...मतलब नए बोझ कि तैयारी जारी है...प्रस्तुत है आज कि वार्ता कुछ रोचक लिंक्स के साथ 

यह जाडे की धूप है या "तुम". - अलसाये सकुचाये गुलाबी ताप के टुकडे, क्षोभमंडल पार से उतरते है मुझ पर और फैलते जाते है सिंकते है रोम रोम, पिघलती है उर्मियाँ बिंधती है कोशिकायें ... बन जाओ मेरी कविता का शीर्षक तुम!! - बन जाओ मेरी पुस्तक का शीर्षक.... जो है ३६५ पन्नों की... वर्ष के दिन की गिनती और यह संख्या.. जाने क्यूँ एक से हैं... लगे है ज्यूँ करती हों ...इल्जाम ... - उनपे ... उनपे ... उनपे ... लगे आरोप ... उनकी नजर में साजिशें हैं ! पर, हकीकत में लगते हमें ... इल्जाम सच्चे हैं ! पर, अब ... करे तो करे ... क... 

आनेवाले दो महीने में बुध ग्रह का आपपर पडने वाला प्रभाव क्‍या होगा ?? - भले ही अपने जन्‍मकालीन ग्रहों के हिसाब से ही लोग जीवन में सुख या दुख प्राप्‍त कर पाते हैं , पर उस सुख या दुख को अनुभव करने में देर सबेर करने की भूमिका ..हेकड़ी,अहंकार और फेसबुक - इस दौर में हेकड़ी बढ़ी है। भ्रष्टनेता से लेकर ईमानदार नौकरशाह तक सबमें हेकड़ी का विकास हुआ है। सामान्य कारिंदे से लेकर भिखारी तक सब हेकड़ी में बातें करते ह... जिन्हें तकलीफ है किसी से ... - भीखमंगा बनकर सबसे मोती मांगने का चलन है बोनस में मिलते दुत्कार का करता कौन आकलन है... अपने ही प्राणों में दौड़ती कड़वाहटों का जलन है , पर एक-दूसरे पर आरोप-... 

 ओ बंजारे - भवसागर के गहन भँवर में नश्वर जीवन के इस क्रम में प्रफुल्ल रहा करते हो ...... गठरी दौलत की नहीं है ...तभी ...... जहाँ -तहां विचरते हो ! नहीं चाह है ...  इश्क - कल रात चाँद यूँ ठहरा मेरे पहलु में आकर जैसे आया हो कभी न जाने के लिए... मैं चाँद और मोहब्बत... बंद कर लिए किवाड़ हमने कभी न खोलने के लिए.... कसमें खायीं ...सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ शाम घनेरी हो चली है सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ * * राह अंधेरी हो चली है सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ चाँदनी* *बिखरने लगी है टूट कर रात की बाहों में शबनम अब गाने लगी है सूनी सूनी फिज़ाओं में मावस की आहट लगी है सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ झुरमुटों में सरसराहट मची है सोच रहा हूँ,कुछ लिखूँ...

क्यों पराजय लग रहा है प्यार तुझको दर्द क्यों है, क्या नहीं स्वीकार तुझको ? क्यों पराजय लग रहा है प्यार तुझको दैन्य से दुनिया भरी है क्या मिलेगा ज़ख्म वाला ज़ख्म तेरे क्या सिलेगा चाहता जो खुद किसी की सरपरस्ती इन बुतों में ढूंढता तू हाय मस्ती बंद भी कर खेल अब सारे अहम के दे गिरा तू आज सब परदे वहम के सोच तो ! क्यों चाहिए संसार तुझको क्यों पराजय लग रहा है प्यार तुझको.. यार देखो तो एक वो चाँद ऊपर ,एक चाँद तुम मेरे हो फिर ज़रा कुछ ओर करीब आ कर,यार देखो तो नैन मिला कर ज़रा एक दफा फिर से देखो तो पास बिठाकर ,यार एक दफा फिर देखो तो || दो या ना दो कोई दाद जीवन में तुम मुझे पर एक बार फिर से साथ निभाकर,यार देखो...पलकों के झूले और ख्वाब...... मन कर रहा चाँद को बुलाने का , पलकों के झूले पे ख्वाब कर झुलाने का । नींद नहीं आती है क्यूँ, ये हमको मालूम नहीं – वादा था उनकी अपने ज़ुल्फों तले सुलाने का । मौसम भी इन दिनों न जाने, क्यूँ भींगा भींगा रहता है – है आरोप उसपे मेरी आँख की नमी चुराने का । मैं धूप को ओढ़े बाहर बैठा, चिड़ियों को दाने चुगाता हूँ – मन करता पाखी बन तेरे पास ही उड़ आने का ...

अपनी ही मैं में .... दर्द आज़ अपनी ही पीड़ा को पीना चाहता है आँसुओं की शक्‍ल में सिसकियों का रूदन कब चिन्हित हुआ रूख़सार पर वो हतप्रभ है औ भयाक्रान्‍त भी इस आक्रोश पर सर्जक का आवेग बहा ले जाता है अपनी ही मैं में बिना किसी की कोई बात सुने ... वो अधजली लौ रौशनी तो उतनी ही देती है कि सारा जहाँ जगमगा दे निरंतर जल हर चेहरे पर खुशियों की नदियाँ बहा दे फिर भी नकारी जाती है क्यों?? वो अधजली लौ मूक बन हर विपत्ति सह पराश्रयी बन जलती जाती परिंदों को आकर्षित कर जलाने का पाप भी सह जाती फिर भी दुत्कारी जाती है क्यों??...शर्माओंगी तो नहीं, तुमको अपनी दिवानी कह दूं आज इस महफिल में उल्‍फत की कहानी कह दूं शर्माओंगी तो नहीं, तुमको अपनी दिवानी कह दूं सितारों ने किया है मुकरर्र,अपनें वस्‍ल का‍ दिन अपनी मुलाकात को मैं , रूहानी कह दूं देख्‍ाता हूं तुमको तो रूह को सूकून ऑंखों को ठंडक आती है क्‍या तुमको मैं ..

आनंदप्रभ कुटी विहार सिरपुर ...... - यायावर -  प्रभात सिंह भोजनोपरांत कुछ देर का ब्रेक लेने लिए रेस्ट हाउस पहुंचे, भोजन की खुमारी कान में कह रही थी, देह कुछ देर का विश्राम चाहती है, दे...बच के रहना उस्ताद से !! - सम्बन्धित शब्द-1.गुरुघंटाल. 2.इच्छा. 3.ईंट. 4.ठग. 5.पाखंडी. 6.पालक.7.मदारी. 8.जादूगर. 9.पंडित. अक्सर शब्द अपना चोला बदल लेते हैं । “हरि रूठे गुरु ठौर है ।... निःशब्द हूँ , मां हूँ ..... - ** * **माम !* *मुझे इतनी सी, प्यार से* *एक बात बताना* *कान में ....* *क्यों करती हो* *इतना प्यार ?* *कोई इतना भी प्यारा* *क्यों लगता है ....?* *कोई इतना भी ...शरद-पूनम की अंजोरी में मैं तुमको पाता हूं..

.........:) 


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धीरे - धीरे सुबह हुई जाग उठी ज़िन्दगी............

आज के बस लिए इतना ही नमस्कार......

4 टिप्पणियाँ:

बहुत सुंदर वार्ता ..
अच्‍छे लिंक्‍स मिले ..
आभार

सभी लिंक्स देखे...
बीच में यकायक अपनी रचना पाकर खुशी हुई :-)
शुक्रिया संध्या जी
सस्नेह
अनु

अच्छी लिंक्स से सजी वार्ता |जाड़े की धुप या तुम ,सुन्दर |
आशा

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