शनिवार, 20 अप्रैल 2013

एवरी थिंग इज फ़ाईन... ब्लॉग 4 वार्ता... संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार..यूँ तो हमरी आदत है,  सुबह के साढ़े चार या पौने पाँच बजे उठ जाने का। बचपन से बाबा ने ऐसी आदत लगाई कि आज तक, हम उस आदत के मारे हुए हैं। हमरा जल्दी उठना कई बार, लोगों को हमको कुछ न कुछ सुनाने का ज़बरदस्त मौका दे ही देता है, 'न खुद सोती है न हमें सोने देती है', ई उलाहना हम सैकड़ों बार सुन चुके हैं। यही आदत अब हम विरासत स्वरुप अपनी बेटी को भी दे ही दिए हैं। अब हम अकेले काहे सुने ई उलाहना-फुलाहना एवरी थिंग इज फ़ाईन... ...लीजिये प्रस्तुत है, आज की वार्ता .......

सप्पोर्ट सिस्टम - थक गयी हूँ फासला तय करते -करते जो आ गया हमारे बीच एक फैसला करते करते . ज़िंदगी....इतनी दुश्वार तो कभी न थी जितना अब हो चली है बड़े दिनों से ... रत्नाकर की थाह कौन ले - रत्नाकर की थाह कौन ले जिस पल से सागर ने स्वयं को बस लहरें होना मान लिया, बनना, मिटना, आहत होना इसको ही जीवन जान लिया ! ...सब कुछ हाय! बहा जा रहा है ... - उसके उन्मद में ऊभ-चूभ हूँ या कि सचमुच ये तन-मन दहा जा रहा है देखो न ! ... 

हम सुनहरे भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं...... ? - कल मैं लम्बी यात्रा पर था, रास्ते में देखा कि एक ट्रक खड्ड में गिरी है और उसके पीछे लिखा है - *" हम सुनहरे भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं ।"* मुझे बड़ी हंसी आई,...  रामलाल ! काठमांडु चलबे का रे? - *डिस्क्लैमर: अगर ये आप अपनी बात समझ रहे तो मात्र सन्योग के अलावा कुछ नही :):):)* रामलाल! काठमांडु चलबे का रे? काहे सामलाल? अरे उहाँ इज्जत...हिंदी ब्लॉगिंग में ये 'तीसरा' कौन है... - हिंदी ब्लॉग जगत बहुत दिनों से *हाइबरनेशन *यानि शीतनिद्रा में था...भला हो जर्मन डायचे वेले का जो इसने शीतनिद्रा को भंग किया...

भानगढ़ का मंदिर शिल्प - भूतिया कुंए का पानी पीते रतन सिंह जीआरंभ से पढें सोमेश्वर मंदिर से दांई तरफ़ चलने पर घनी झाड़ियाँ है तथा इधर कोई रिहायसी निर्माण कार्य नहीं है। .... आभासी दुनिया के वास्तविक खतरे - इंटरनेट और सोशल नेटवर्किंग साईट्स का विस्तार जहाँ लोगों को जोड़ रहा है वहीं संचार की विकसित होती यह नयी संस्कृति अपने साथ कई तरह की समस्याएं भी ला रही ..चिट्ठियों से चिट्ठा तक: जनसत्ता में ‘शब्द-सृजन की ओर’ - 19 अप्रैल 2013 को जनसत्ता के नियमित स्तंभ ‘समांतर’ में शब्द-सृजन की ओर चिट्ठे तक The post चिट्ठियों से चिट्ठा तक: जनसत्ता में ‘शब्द-सृजन की ओर’...

ओ........! सड़कवासी राम! ... - हरीश भादानी जन कवि थे। थार की रेत का रुदन उन के गीतों में सुनाई देता था। आज राम नवमी के दिन उन का यह गीत स्मरण हो आया ... *ओ! सड़कवासी राम! ** * - *.हर.. मुझे रावण जैसा भाई चाहिए ... - फेसबुक आदि पर ये कविता पिछले कई दिनों लगातार शेयर होती रही है, लेकिन इसे लिखनेवाले की कोई पुख्ता पहचान नहीं मिली हालांकि *सुधा शुक्ला जी* ने ये कविता १९९८..रामजन्म प्रसंग : भगवान प्रकट होते हैं! - चाँद चढ़े, सूरज चढ़े दीपक जले हजार। जिस घर में बालक नहीं वह घर निपट अंधियार।। कभी रामलीला में गुरु वशिष्ठ के सम्मुख बड़े ही दीन भाव से राजा दशरथ के मुख ... 

सदा नीरा ...- ना कोई डोर/ नातों की ना कोई बंधन/ वादों का फिर भी... साथ चलते जाना सदा नीरा के सिमटने से मिलन का अहसास पास होकर भी दूर होना दो किनारे हैं... तो क्या ...आँखें.*आँखें * *कितनी बड़ी दुआ हैं !* *किसी अंधेरी राह के * *राही ने हसरत छलकाई * *सच ऐसा है क्या ...* *सोते - जागते हर पल * *स्वप्नदर्शी बना * *कितनी चुभन दे * *दिखा कर राह * *रौशन **अँधेरे की  ..थोड़ा अपना सा,थोड़ा बेगाना सा .. - इस शहर से मेरा नाता अजीब सा है। पराया है, पर अजनबी कभी नहीं लगा . तब भी नहीं जब पहली बार इससे परिचय हुआ। एक अलग सी शक्ति है शायद इस शहर में कि कुछ भी न ......

प्यार में दर्द है, - प्यार में दर्द है, प्यार में दर्द है ,दर्द से प्यार है,न कहीं जीत है न कहीं हार है वो सनम जब यहाँ बेवफा हो गया टुकड़े-टुकड़े जिगर के मेरे कर गया,.सब चारागरों को चारागरी से गुरेज़ था - मैं जयपुर से जोधपुर के लिए रोडवेज की बस में यात्रा कर रहा था। गरम दिनों की रुत ने अपनी आमद दर्ज़ करवा दी थी। ये काफी उमस से भरा हुआ दिन था।  ...पूंजी-निवेश - *पूंजी-निवेश* ****** आपने पैदा की है पुत्री पुत्र का दर्द क्या होता है , आप उससे अनजान हैं , रात- रात भर सोये नहीं हैं उसकी परवरिस में कौन सा गम ढोए नहीं..शेर जो देखन मैं चल्या, शेर मिल्या ना कोय --- - बचपन में शेर की कहानी सुनने में बड़ा मज़ा आता था। आज भी डिस्कवरी चैनल पर अफ्रीका के जंगलों की सैर करते हुए जंगली जानवरों के बारे में फिल्म देख कर बड़ा रोमा...


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दीजिये इजाज़त नमस्कार.......

शनिवार, 13 अप्रैल 2013

कबहुँ नैन हँसे, कबहुँ नैन बीच कजरा... ब्लॉग 4 वार्ता... संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार..आ जाए जब जीना और मरना जीवन के प्रत्येक पल में, हर आती जाती श्वास दे अहसास मृत्यु और पुनर्जन्म का, पहचान लें अपनी कमियाँ निरपेक्ष भाव से जो मिटा दे कलुष अंतर्मन का, देखें केवल द्रष्टा भाव से सभी अच्छे और बुरे कर्मों को, बिना किसी पूर्वाग्रह के झांकें दूसरों के अंतर्मन में और कर पायें तादात्म्य आत्मा से, लगती है सहज तब मृत्यु भी जीवन में घटित घटनाओं की तरह, नहीं होता अनुभूत कोई अंतर तब जीवन और मृत्यु में. ...लीजिये प्रस्तुत है, आज की वार्ता ........

Diamonds are forever!! - कभी-कभी हमको अपना ऊपर बहुत गोस्सा आता है कि जहाँ पढा-लिखा लोग-बाग, अपना बात कहने के लिये गीता-पुरान, उपनिसद अऊर ग्रंथ का उदाहरन देता है मील का पत्थर - वनिता अप्रेल अंक में मेरी कहानी "परछाइयों के उजाले"...केहि विधि प्यार जताऊं ..........."  कबहुँ आप हँसे , कबहुँ नैन हँसे , कबहुँ नैन के बीच , हँसे कजरा । कबहुँ टिकुली सजै , कबहुँ बेनी सजै , कबहुँ बेनी के बीच , सजै गजरा । कबहुँ चहक उठै , कबहुँ महक उठै , लगै खेलत जैसे, बिजुरी औ बदरा । कबहुँ कसम धरें , कबहुँ कसम धरावै ...

बैठ मेरे पास तुझे देखता रहूँ ………… - सोचती हूँ कभी - कभी ना जाने क्यों छोडा उसने क्या कमी थी? खुद की तो पसन्द थी रूप रंग पर तो जैसे भोर की उजास छलकती थी आईने भी शर्माते थे जब रूप लावण्य दमकता ...  गीत - मैं यह भी तो न जान सकी मुझ पर बहार कब आई है, कब कोमल कलियाँ चटक गयी; कब लाज़ की लाली धाई है। कब मेरा वह भोला बचपन इस रंगमंच से विदा हुआ, कब चंचल चितवन चुंगल... राधे राधे तेरे दर्शन को हम हैं प्यासे - राधे राधे तेरे दर्शन को हम हैं प्यासे जल्दी आ मन उपवन मे ………नैना भये उदासेसाथ मे मोहन को भी लाना हिल मिल फिर बंसी बजाना करो कलोल मिल बांके राधे राधे तेरे..

खाली दिमाग शैतान का घर ! - इन दिनों वत्सल के पास मैसूर आई हुई हूँ ... कहते है खाली दिमाग शैतान का घर होता है :-) --- खुद को काम में इतना झौंक दो की दिमाग कभी खाली ही न रहे , साथ ही ... ऐसे हमारे हाल कब थे ! - अधिक व्यस्तता की वजह से क्षमा सहित ये टुच्ची सी गजल प्रस्तुत है :) :- *श्रीमती तुम्हारे सोचने को, ऐसे हमारे हाल कब थे,* * ...देवी भक्तों ने जमकर उड़ाया नानवेज ! - देवी के भक्तों ने कल यानि 10 अप्रैल की रात को जमकर उड़ाया नानवेज ! वैसे तो मैं नवरात्र में पूरे नौ दिन व्रत ना करके पहले और आखिरी दिन ही व्रत करता हूं, ... 

सुचना माध्यमों (media ) का नमो नम: और रागा गान !! - आजकल सुचना माध्यमों में जिस बात पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है वो नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने को लेकर है ! .... जरूर लौटेगी गौरैया: जनसत्ता में ‘आरोहण’ - 12 अप्रैल 2013 को जनसत्ता के नियमित स्तंभ ‘समांतर’ में आरोहण गौरेया का The post जरूर लौटेगी गौरैया: जनसत्ता में ‘आरोहण’...सदीप भाई, पोपट और ब्लॉगर्स...खुशदीप - रात को इंटरनेट पर बैठा तो कल की मेरी पोस्ट के लिए स्पैम में ये दो टिप्पणियां दिखीं...टिप्पणियां करने वाले दोनों सज्जनों का प्रोफ़ाइल नहीं मिला...ना डॉ संत... 

सोलह दिन गणगौर के .... - इन दिनों गणगौर त्यौहार की तैयारियां चरमोत्कर्ष पर है . आज *सिंजारा* है , सुहागिनें हाथों में मेहंदी रचाएंगी , झुण्ड के झुण्ड पनघट /बावड़ी /तालाब से गीत ...  .रामजी कब आओगे? - फिर से करने तुम राज, रामजी कब आओगे? है पूजित रावण आज, रामजी कब आओगे? निज कर्मों से सिखलाया, नारी का मान बढ़ाया लुटती सीता की लाज, रामजी कब आओगे? ... अमन के लिए. - * *** ** अमन के लिए. खुशी मिलती यहाँ एक पल के लिए, बचा के कर रख प्यारे कल के लिए ! रेत के जैसा फिसलता हुआ वक़्त है , मत गँवाना कपट और छल के लिए !...

 इन दिनों....... - इन दिनों, सांझ ढले,आसमान से परिंदों का जाना और तारों का आना अच्छा नहीं लगता गति से स्थिर हो जाना सा अच्छा नहीं लगता....आक्रांत हूँ ... - विभिन्न विधियों से चलती रहती है मेरी चरित्र-योजना ... मैं अपनी अस्मिता को निजता तथा विशिष्टा के लचीले अनुपातों को घटा-बढ़ा कर समायोजित करती रहती हूँ ...मेरा मानवीय कद - चैतन्य तुम बड़े हो रहे हो सीख गए हो जूते के फीते बांधना साथ ही अपनी बातों को साधना आ गयी है तुम्हें मन की कहने, मोह लेने की अद्भुत कला जुटा लेते हो कितनी..





दीजिये इजाज़त नमस्कार.......

शनिवार, 6 अप्रैल 2013

अनुभुति की सुकृति युगे-युगे...ब्लॉग 4 वार्ता... संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार...मानव धर्म वह व्यवहार है जो मानव जगत में परस्पर प्रेम, सहानुभूति, एक दूसरे का सम्मान करना आदि सिखाकर हमें श्रेष्ठ आदर्शो की ओर ले जाता है। मानव धर्म उस सर्वप्रिय, सर्वश्रेष्ठ और सर्वहितैषी स्वच्छ व्यवहार को माना गया है जिसका अनुसरण करने से सबको प्रसन्नता एवं शांति प्राप्त हो सके। धर्म वह मानवीय आचरण है जो अलौकिक कल्पना पर आधारित है और जिनका आचरण श्रेयस्कर माना जाता है। संसार के सभी धर्मो की मान्यता है कि विश्व एक नैतिक राज्य है और धर्म उस नैतिक राज्य का कानून है। दूसरों की भावनाओं को न समझना, उनके साथ अन्याय करना और अपनी जिद पर अड़े रहना धर्म नहीं है। एकता, सौमनस्य और सबका आदर ही धर्म का मार्ग है, साथ ही सच्ची मानवता का परिचय भी। [लाजपतराय सभरवाल]. इस सुविचार के साथ आइये चलते हैं आज की वार्ता पर कुछ चुनिन्दा लिंक्स के साथ...  लीजिये प्रस्तुत है, आज की वार्ता ........ 

घूरने वालों ने दी कुर्बानी ( एक व्यंग्य टिप्पणी) - *हिंदुस्तान के सम्पादकीय पृष्ठ पर नश्तर कॉलम में प्रकाशित ( देखते देखते चले गये देखने वाले)* * **सुना है घूरे के दिन भी फिरते हैं तो भला घूरने वालों के दिन..मन लागा मेरा यार फकीरी में..जुदा -जुदा फकीरी - श्रीगंगानगर-फकीरी! जिस के पास सब है उसका फक्कड़ अंदाज फकीरी है। जिसके पास कुछ लेकिन वह ऐसे जीता है जैसे दुनियाँ की सभी सुख सुविधा उसके कदमों में है तो ...३ जी रोमिंग - लगता है कि देश में किसी कानून में कमी निकाल कर अपना काम निकाल लेने की नेताओं की मंशा का असर अब उद्योग समूहों पर भी पड़ने लगा है ...

सिंघा धुरवा - बार-नवापारा के जंगल में कांसा पठार एवं रमिहा पठार के बीच में हटवारा पठार स्थित है। इस पठार को सिंघा धुरवा कहा जाता है। मान्यता है कि जंगल में स्थित पठार पर आनी बानी : 14 भाषा के कविता के छत्‍तीसगढ़ी अनुवाद - संगें संग इहू ल देखव —छत्तीसगढ़ी कविता मा लोक जागरन के सुर चना के दार राजा, चना के दार रानी.. नक्सली व सलवा - जुडूम के अत्याचारों से त्रस्त होकर भाग कर आन्ध्र आये हजारों आदिवासी परिवार जीने के लिए तरस रहे - साथियों , इस समय मै आन्ध्र प्रदेश के जिला खम्मम के भद्राचलम क्षेत्र के उस इलाके में हूँ , जहाँ दक्षिण छत्तीसगढ़ से सैकड़ों आदिवासी गाँव के गाँव छोड़कर आ बस..

 मिस काल - गीत बजता- 'प्यार किया तो डरना क्या, प्यार किया कोई चोरी नहीं की', एक समय था जब रेडियो पर यह गीत सुनते कोई लड़की पकड़ी जाए तो उसकी खैर नहीं, और लड़के सुनते ..मुकम्मल ख़त नहीं लिखते .....!!! - *उसे .... मैंने ही लिखा था कि लहजे बर्फ हो जाएँ तो पिघला नहीं करते ....!!!**परिंदे डर के उड़ जाएँ तो फिर लौटा नहीं करते .. उसे मैंने ही लिखा था **कि ...सहर न हुयी... - *रात मेरी अँधेरी, सहर न हुयी* ** *पीर बढ़ती गयी मुक्तसर न हुयी -* * हम चिरागों के दर से बहुत दूर थे* *चाँद भी सो गया ,चांद... 

 वो आवाज भी बदलेंगे और अंदाज भी ! - * ** **चोरी का माल खाके, हुए बदमिजाज भी, * *वो जो बेईमान भी है और दगाबाज भी।* * * *मिला माल लुच्चे-लफंगों को मुफ्त का, * *घर-लॉकर भी भर दिए, और दराज भी। ...कहना मुश्किल था कि बोतल में शराब थी या --- - होली के कुछ दिन बाद शाम का समय था। अस्पताल से घर जाते हुए सड़क पर ट्रैफिक बहुत मिला। ऊपर से सड़क पर पुलिस के बैरिकेड, मानो स्पीड कम करने के लिए बस इन्ही ..घर-जमाई - किसी विद्वान ने लिखा है कि ‘इतिहास खुद को दुहराया करता है और अगली बार उसी पर प्रहसन यानि नाटक भी करवाता है'. मैं, टीकाराम फुलारा अपने देश से बहुत दूर ...

सुहाने सपने - सुहाने सपने सपने सभी देखते हैं। चाहे बच्चे हो ,जवान हो या बूढ़े। ये सपने कभी मन को गुदगुदा जाता है तो कभी डराता और कभी रात भर तंग करता है। देखिये कैसे ?..."युगे-युगे"...मिथ्या दंभ में चूर स्वयं को श्रेष्ठ घोषित कर कोई श्रेष्ठ नहीं हो जाता निर्लज्जता का प्रदर्शन निशानी है बुद्धुत्व की सूर्य को क्या जरुरत दीपक के प्रकाश की वह ...अनुभुति की सुकृति ....!! - अनुभूति ...से अनुभूत ... अनुभूति से अनुरंजित ... अनुभूति के अनुकूल ... अनुभुति से अनुरक्त ... 

बोझिल तन्हाइयां - आँखों की आँखों से बातें ली जज्बातों की सौगातें कुछ हुई आत्मसात शेष बहीं आसुओं के साथ अश्रु थे खारे जल से साथ पा कर उनका हुई नमकीन वे भी यह अनुभव कुछ ....ये मेरा प्रेम पत्र पढ़ कर ...:) इन्टरनेट खंगालते हुए कुछ प्रेम पत्र प्राप्त हुए सोचा आप लोग भी पढ़ लें .... एक सम्पादक पति का प्रेम पत्र .. क्षणिका जिद्दी मन कभी कभी खुद की भी नहीं सुनता और वही करता है जो उसे खुद को अच्छा लगता है। *   

सुअरमार गढ़ - छत्तीसगढ़ अंचल में मृदा भित्ति दुर्ग बहुतायत में मिलते हैं। प्राचीन काल में जमीदार, सामंत या राजा सुरक्षा के लिए मैदानी क्षेत्र में मृदा भित्ति दुर्गों का... दुनिया को कामसूत्र का ज्ञान देने वाला देश खुद अपने सेक्स से जुड़े मसलों को लेकर इतना असहाय हो गया!!! .*महापुरुषों की मूर्तियाँ लगवाकर उनको भूल जाना और महान विचारों को किताबों तक सीमित कर देना हमारा पुराना शगल है!!!* * **महिला सुरक्षा को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर हमारी छवि धूमिल ही हुई है।* *..सपने और रोटियां.सपने अक्सर झूठे होते हैं. मैने झूठ बेचकर सच ख़रीदा है. सच अपने बूढ़े माँ बाप के लिए, सच अपने बीवी बच्चों के लिए, मैने सपने बेचकर खरीदी हैं रोटियां. सपने सहेजे नहीं जा सकते, मैं सहेज कर रखता हूँ रोटियाँ, ...

प्रस्तुत हैं नैनों पर कुछ दोहे नयन झुकाए मोहिनी, मंद मंद मुस्काय । रूप अनोखा देखके, दर्पण भी शर्माय ।। नयन चलाते छूरियां, नयन चलाते बाण । नयनन की भाषा कठिन, नयन क्षीर आषाण । इन्तजार ! *झुकी पलकों में छुपे* *उसके नयनों को * *सदा ही नम पाया,* *आहते में खड़े-खड़े,* *किसी की राह तकते * *उसे हरदम पाया।* *कोशिश तो बहुत की * *पढने की वह चेहरा,* *मगर पढ़ने न दिया,* *कभी बिखरी हुई लटों ने,*..दीवानगी राजा विक्रम अज्ञात वास में शायद परियों के देश में १* पहले मेरे प्यार और नेमत के काबिल बन जा फिर उठा हाथ सज़दे में या कुछ माँगने खातिर २ ** मेरा इश्क मेरी दीवानगी मयखाने में नज़र आती है ........


दीजिये इजाज़त नमस्कार.......

बुधवार, 3 अप्रैल 2013

मैं चाहे जो करूं, मेरी मर्ज़ी...ब्लॉग 4 वार्ता... संध्या शर्मा

संध्या शर्मा का नमस्कार...एक बेहतरीन ऐतिहासिक वार्ता के बाद वार्ता में काफी रौनक दिखाई दे रही है ... उम्मीद करते हैं कि इतिहास को जल्दी-जल्दी दोहराया जायेगा...शुभकामनायें...:)....लीजिये प्रस्तुत है, आज की वार्ता ........ 

आओ चुनरिया सतरंगी कर दूँ - आओ चुनरिया सतरंगी कर दूँ अबकी बार होली में आओ प्रीत रंग हजार बिखेर दूं अबकी बार होली में जागा है मधुमास मास आज सुगंध लिए ॠतुराज आया ...होली की हुडदंग कमेंट्स के संग - होली की हुडदंग कमेंट्स के संग...उगतीं हैं कवितायें... - एक दिन उसने कहा कि नहीं लिखी जाती अब कविता लिखी जाये भी तो कैसे कविता कोई लिखने की चीज़ नहीं वो तो उपजती है खुद ही फिर बेशक उगे कुकुरमुत्तों सी .. 

श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (४८वीं कड़ी) - मेरी प्रकाशित पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता (भाव पद्यानुवाद)' के कुछ अंश: ग्यारहवाँ अध्याय (विश्वरूपदर्शन-योग-११.४७-५५) श्री भगवान: तुम पर प्रसन्न...एस. के. पाण्डेय की लघुकथा - बुराई - बुराई रजनी ने राजीव से कहा कि जब देखो तब तुम हमारी बुराई ही करते रहते हो कभी प्रशंसा नहीं करते। राजीव बोला यह तुम्हारा भ्रम है। मैं तुम्हारी बुराई क्यों कर..एक जंगल में मैं थी, एक जंगल मुझमें था... - रास्ते नये नहीं थे. बस अरसे से रास्तों ने पुकारा नहीं था. चलने का जी चाहता तो था लेकिन रास्तों की पुकार का इंतजार था। तो चलने की ख्वाहिशों को .... 

कैसे मीमांसा करे कोई - तुम अग्निवेश हो कैसे मीमांसा करे कोई जलाकर खाक करने की तुम्हारी नियति रही कैसे नव निर्माण करे कोई विध्वंसता तुम्हारा गुण रहा क्या हुआ जो कभी तुमने रोटी ...इश्क ..इश्क ...इश्क ...इश्क ..इश्क ...इश्क - अनोखा है ढाई अक्षर का इश्क रब को यार बना देता है इश्क। बेटी का भाल चूमता है इश्क प्रिय की बाहों में झूमता है इश्क। मामूली नहीं विशाल है इश्क चाहो तो ...दार्शनिक का इनाम - युवा दार्शनिक वॉल्‍फगांग हैरिख दर्शनशास्‍त्र के ऊपर एक नई किताब लेकर महाशय 'ब' के पास आए और उनसे आग्रह किया कि वे तत्‍काल उसे पढ़ लें। किताब इतनी मोटी थी...

बेटा क्या सोच रहा - आज न जाने क्यूँ बाबूजी उदासी धेरे मुझे जैसे ही पलक मूंदता आप समक्ष होतेमेरे आपका हाथ सर पर दे रहा संबल मुझे | हो गया कितना बदलाव पहले में और आज में... कोई तो है..... - * ** **कोई तो है....जो मेरा इंतज़ार करता है..* *दिल,तमन्ना औ' हम पे जां निसार करता है..!* * **मेरे दीदार को तरसे हैं...किसी की ऑंखें...* *वो एक शख्स..... "पिया के घर में पहला दिन ' परिचर्चा : साधना वैद जी, इस्मत जैदी एवं अर्चना चाव जी के संस्मरण - पिया के घर में पहला दिन ' परिचर्चा के अंतर्गत अब तक *लावण्या शाह जी, रंजू भाटिया, रचना आभा, स्वप्न मञ्जूषा 'अदा' ,सरस दरबारी , कविता वर्मा , वन्दना अवस्थी...

प्रेम/तलाश/अँधेरा - मैंने बोया था उस रोज़ कुछ, बहुत गहरे, मिट्टी में तुम्हारे प्रेम का बीज समझ कर. और सींचा था अपने प्रेम से जतन से पाला था. देखो ! उग आयी है एक नागफनी... कहो...पराई प्यास.... - अधपके बालों के बीच दर्द भरा निस्तेज चेहरा निढाल, बेहाल जैसे गिन रहा हो अपनी ही सांसों का आना-जाना ज्वर की तपन से तप्त रग-रग में दौड़ती थकान दिनभर की ... उदासी मेरे जैसी..... - ये उदासी मेरे जैसी है, ये प्‍यार तेरे जैसा है मैं खुद को खुद से मि‍लने नहीं देती तू मुझको पास अपने आने नहीं देता तेरा प्‍यार शीशी बंद खुश्‍बू, उड़ जाएगा ...

बावला बनने का सुख - सचमुच में बावला होने के जितने दुःख हैं सोच समझकर बावला बनने के उतने ही सुख । मूर्ख बने रहना हर परिस्थिति में कमजोरी नहीं होता । कई बार तो ऐसा भी देखने में.खिलवत में सजन के मैं मोम की बाती हूं .... - *लेख* ** * * * - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह * * * *‘प्रेम’ एक जादुई शब्द है। कोई कहता है कि प्रेम एक अनभूति है तो कोई इसे भावनाओं का पाखण्ड...कौन यहाँ मिलनातुर नहीं है ? - सब ऋतुओं से गुजर कर तुम ऐसे मेरे करीब आना कि अपने मन के पके सारे धूप-छाँव को मुझे ...

नरेंद्र मोदी के आगे घूमती भाजपा की रणनीति - *हरेश कुमार* भारतीय जनता पार्टी के नए अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा कर दी है, यह अनुमानों के अनुसार ही था। ...जिहाद और आतंक - मुंबई पुलिस के एक आन्तरिक परिपत्र में जिस तरह से प्रमुख भारतीय इस्लामी संगठन जमात-ए-इस्लामी हिन्द की शाखाओं पर उसके लड़कियों के... संजय दत्त : अभिनेता या अपराधी ! - संजय दत्त ! ऐसा लग रहा है कि संजय दत्त का मामला आज देश की राष्ट्रीय समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या है। हर तरफ से विचार आ रहे हैं, राजनेता, ..उसने  मुझसे इक दिन भीगी आँखों से कहा ये मुहब्‍बत भी बहुत बुरी शय होती है किसी और की खबर रखते-रखते खुद से बेखबर हो जाती है ...कुछ टूटने से पहले .... आवाज हो ये जरूरी तो नहीं तुमने देखा तो होगा फूलों का खिलना और बिखर जाना चुपके से!!! ..  


 

दीजिये इजाज़त नमस्कार.......

सोमवार, 1 अप्रैल 2013

आज की एतिहासिक वार्ता में कोई भी ब्लागर बचा नहीं सब के चिट्ठे दर्ज़ हैं यहां..

सवाल : दो माइक क्यों
जवाब : जब सियासी मामला हो तो मुंह दो जाते हैं


    समीरलाल समीर ने एक लम्बी ज़द्दो-ज़हद के बाद ब्लागर्स की एक सियासी पार्ती की घोषणा अंतत: आज़ जबलपुर आकर कर ही दी . उनका अचानक जबलपुर आगमन हुआ.आज़ अल्ल सुबह 5:30 बजे उड़न-रक़ाबी ने जबलपुर के रामपुर एम.पी.ई.बी. की पहाड़ियों जैसे ही लैण्ड किया वैसे ही उधर मौज़ूद जबलपुरिया ब्लागर्स   सह फ़ेसबुकिये क्रमश: विजय तिवारी, बवाल, राजेश दुबे अनूप शुक्ल जी ने सुबह सवेरे टाइप का स्वागत किया. किसी के हाथ में लोटा और पानी से लबालब बाल्टी लिये था, तो कोई नीमिया दातून लिये था. बवाल चाय खौलाते पाए गए.
पोण्ड में नहाने के इरादा था पर मुईं
गाजरघासों से डरे डरे शुक्ला जी

बवाल ने जब प्रात: कालीन औपचारिकाओं के निपटान के बाद चाय पेश की तो समीर लाल यह कहते पाए गये- "कौन टाइप की चाय बनाने लगे ?"- समीर का यह स्टेटमेंट सुन बवाल ने कहा-"जौन टाइप की चाय चाह रहे हो बो शाम को मिलेगी !" इस वाक्य को सुन कर अनूप शुकल जी दूर तलछटी में पानी परे पौंड में  खड़े खड़े मंद-मंद मुस्कान बिखेरेते हुए मौज लेने लगे. यूं तो वे विद्योत्तमा की तलाश में बावरे कालिदासों.  को लेकर भी चिंतित थे पर समीरलाल को लेकर कुछ अधिक भावुक भी लगे जैसा समीरलाल के लिये उनका आदि काल से रवैया रहा है...  इस बीच  उनके सेल पर एक फ़ोन आया जो सम्भवत: दिल्ली से था कालर थे सोचने वाले गधों के मित्र अविनाश वाचस्पति अविनाश जी को  पता नहीं किधर से समीरलाल के अत्यंत गोपनीय दौरे की भनक लगी कि बस वे लगे कि कोई जबलपुर से कन्फ़र्म कर दे कि समीर आ गये तो वे हर गोपनीय को ओपनीय करने का कारोबार आरम्भ करें. किंतु जबलपुरिया हैं कि माई नरबदा की कसम खाए बैठे है कोऊ कछु बतातई नईं आंय .. उनके दिल की हालत ... बहुत अजीब सी थी तभी हमाए फ़ोन पे फ़ोन आया रायपुर से कि हम चंगोरा भाटा से लौटकर ………… सीधे जबलईपुर आवेंगे. व्यवस्था ठीक ठाक रखना . 
सुबह सकारे काफ़िला समीर जी को घर छोड़ आया आज शाम एक प्रेस कांफ़्रेंस हुई जिसकी विस्तृत रिपोर्ट यानी  आगे का भया ये जानने मिसफ़िट पे आना पड़ेगा  
  तब तक आप लोग खुदके लिंक खोजिये... 
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